Sunday, February 19, 2012

वाह-वाह फरमाते है !


इश्क है कि नझमों-गझलों की वो चाह फरमाते है !
धडकते शेरो लफ्ज पे कभी वो आह फरमाते है !

कहीं ये तहरीर पे झरीन-ए-खुश्बु तो नही,
की वो हर आल्फाज पे वाह-वाह फरमाते है !

अकसर पुछते है लोग खुतबा इस शस्ख का
उसके ही दिल में जनाब, पनाह फरमाते है !

मिलेंगी नहीं ये शख्शियत मुल्क-ए-चाह मे,
चाहत को तेरी जो वल्लाह फरमाते है !

जमानते इश्क ना पुछना कभी उन आशिको से,
जान-ए-खिदमत खुद की, गवाह फरमाते है !

-श्याम शून्यमन्स्क
ता-१९/०२/१२

खुतबा=address
तहरीर=writing, composition

नमस्ते दोस्तो , आज एक बार फिर उर्दु शब्दो का प्रयोग करते हुए कुछ लिखने की कोशिष की है
आपकी टीका-टीप्पणी मेरे मार्गदर्शक बनने मे सहायता करेंगे ये सोच आप के साथ शेयर कर रहा हुं
आपके प्रतिभाव की प्रतिक्षा मे आपका
श्याम

2 comments:

  1. Sayar Saheb aapni aa Sayari vanchine bas वाह-वाह karvanuj man thay 6e Awesome

    ReplyDelete