इश्क है कि नझमों-गझलों की वो चाह फरमाते है !
धडकते शेरो लफ्ज पे कभी वो आह फरमाते है !
कहीं ये तहरीर पे झरीन-ए-खुश्बु तो नही,
की वो हर आल्फाज पे वाह-वाह फरमाते है !
अकसर पुछते है लोग खुतबा इस शस्ख का
उसके ही दिल में जनाब, पनाह फरमाते है !
मिलेंगी नहीं ये शख्शियत मुल्क-ए-चाह मे,
चाहत को तेरी जो वल्लाह फरमाते है !
जमानते इश्क ना पुछना कभी उन आशिको से,
जान-ए-खिदमत खुद की, गवाह फरमाते है !
-श्याम शून्यमन्स्क
ता-१९/०२/१२
खुतबा=address
तहरीर=writing, composition
नमस्ते दोस्तो , आज एक बार फिर उर्दु शब्दो का प्रयोग करते हुए कुछ लिखने की कोशिष की है
आपकी टीका-टीप्पणी मेरे मार्गदर्शक बनने मे सहायता करेंगे ये सोच आप के साथ शेयर कर रहा हुं
आपके प्रतिभाव की प्रतिक्षा मे आपका
श्याम